निर्भया के अपनों की
पीड़ा व्यक्त करती कविता-
तारीख कभी टलती है तो
कभी बढ़ती है।
ना जाने कब रुकेगा ये
दर्द का सिलसिला।
आंसुओं से डबडबाई
आंखें उसकी पूछती है
कि अब और कितनी
निर्भया ?
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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