क्या मध्यम वर्ग ठेकेदार
बन चुका है, चुप रहने और
सहने का ?
कभी संस्कारों के नाम पर
कभी मानवीयता के नाम पर.
निम्न वर्ग बोलता है लेकिन
आवाज़ कोई सुनता नहीं,
कभी खुलकर हिम्मत जुटा पाता नहीं.
उच्च वर्ग के महलों की दीवारें
है इतनी मोटी की कोई
आवाज़ पहुंचती नहीं,
या सुनकर भी कर दी जाती है
अनसुनी.
हर रोज संघर्ष की चक्की
में पिसता,
अधिकारों से वंचित
रहकर चुपचाप सब सहता,
सदियों से एक
ही कहानी कहता मध्यमवर्ग.
क्या जुटा पाएगा ?
साहस कहने को
अपने मन की,
और अपने हक की बात.
शिल्पा रोंघे
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