यूं तो कई बार तोड़ा
गया मेरी उम्मीदों
से बने महल को,
अवशेष लिए मैंने
समेट, उन्हीं ईंटों
से मैंने फिर नया
आशियाना बना
लिया, अपनी ही
आशाओं से फिर
उसे रोशन किया
बिना थके और बिना
मायूस हुए.
शिल्पा रोंघे
गया मेरी उम्मीदों
से बने महल को,
अवशेष लिए मैंने
समेट, उन्हीं ईंटों
से मैंने फिर नया
आशियाना बना
लिया, अपनी ही
आशाओं से फिर
उसे रोशन किया
बिना थके और बिना
मायूस हुए.
शिल्पा रोंघे
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