एक कलम की कहानी
एक कलम हूं मैं,
खुद को ही सजाती हूं मैं.
और खुद को ही मैं सवांरती हूं मैं.
कविता, कहानी और लेख बनकर
अपने ही हाथों से शब्दों की तस्वीर कागज़ पर बनाती हूं
मैं.
जो कैमरे से नहीं स्याही से बनती है.
जो आंखों से नहीं दिखती लेकिन
सीधे ज़हन में उतरती है.
शिल्पा रोंघे
एक कलम हूं मैं,
खुद को ही सजाती हूं मैं.
और खुद को ही मैं सवांरती हूं मैं.
कविता, कहानी और लेख बनकर
अपने ही हाथों से शब्दों की तस्वीर कागज़ पर बनाती हूं
मैं.
जो कैमरे से नहीं स्याही से बनती है.
जो आंखों से नहीं दिखती लेकिन
सीधे ज़हन में उतरती है.
शिल्पा रोंघे
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