यूं तो देखता हूं रोज ही में उस चांद को
उसकी लंबी उम्र की दुआ मांगता हूं अक्सर
ही,
वैसे याद करने का कोई दिन तय किया
नहीं.
यूं तो हर रात ही उसकी रोशनी मेरे
चेहरे पर है पड़ती.
यूं तो अलविदा कह जाता है वो शब ढलते ही.
फिर भी ना जाने क्यूं महसूस होती है दिन के उजाले
में भी उसकी परछाई.
क्या वो भी मुझे देख पाता होगा अरबों और करोड़ों की दुनिया में भी.
शिल्पा रोंघे
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