Saturday, January 6, 2018

आजादी के मायने ?

सालों बीत गए गुलामी की जंजीरे टूटे हुए.
था देश सोने की चिड़िया सदियों से इसमें कोई
दो राय नहीं.

मचाई लूट बर्बर लुटेरों ने सदियों से और हड़पी जमीनें
और राज्य फिरंगियों ने, इतिहास के पन्ने तो कहते है यही.
विभाजन का दंश भी झेला देश ने निजी स्वार्थ के चलते.

हर गल्ली मुहल्ले में मंहगे स्कूलों और कॉलेजों,
को माना गया विकास की पहचान जिसमें
कभी जा ना पाए गरीब के होनहार बच्चें.

गगन को  चुमते पांच सितारा होटलों को
माना गया विकास का प्रतीक.
जिसके सामने मांगते है भीख गरीब के भूखे
बच्चें.

नई तकनीक का वादा कर उघोग और धंधे
आज भी वचिंत है मूलभूत सुविधाओं से
मजदूर उसमें है बहाते है पसीना दिन रात
दो वक्त की रोटी के लिए.

यूं तो विदेशों से आयात होती है अस्पतालों
में मंहगी सुविधाएं, मशीनें और दवाएं.
उन्ही अस्पताओं के आगे दम तोड़ते हैै गरीब
कई कम पैसों के चलते.

कहने को बंधुआ मजदूरी रही नहीं अब, लेकिन फिर
भी कर्मचारियों की डोर अब मल्टीनेशनल
तो कभी निजी पूूंजीपतियों के है हाथ में.

सालों से हो रहे है देश बदलने के दावें,
पहले डकैतों तो अब चोर और उच्चकों का ख़ौफ है.

लूटेरों के हाथों लूटती थी अस्मतें पहले और जारी है बेखौफ अब भी.

पहले लगान था तो अब रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की मार है.

यूं तो ऐसी कहानियां छापता और उठता हर अखबार
है लेकिन क्या सांत्वना जाहिर करना और बदलाव की राह
देखना ही काफी.

हां वक्त लगता है विकासशील से विकसित बनने में किसी भी देश को.

लेकिन क्या सिर्फ विकास की बांट जोहना ही एक विकल्प है ?

शिल्पा रोंघे

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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।