Wednesday, January 17, 2018

एक काल्पनिक रचना- वो बिना पते का ख़त

एक काल्पनिक रचना- वो बिना पते का ख़त
वो हवा के झौंके सा
हमउम्र सा था,
पढ़ता था शायद 
अगली या साथ वाली
क्लॉस में
लेकिन किसी दूसरे शहर
में, किसी दूसरे स्कूल में
इस दुनिया का था,
लेकिन आया ना कभी
सामने, गलती से डाकिया
उसका वो ख़त डाल गया घर के सामने.
क्या इत्तेफ़ाक था !
ना जाने वो लिखा गया था किसके लिए
कयास हम ही लगाते रह गए.
इत्तेफ़ाक था बहुत खूबसूरत
पर शायद शब्द वो लिखे गए
थे किसी और के लिए.
चलो दो पल के लिए हम भी खुश हो लिए.
पता नहीं लिखा था उस पर, लेकिन इश्क
आज भी लापता नहीं है ये सोचकर ही
हम तसल्ली कर बैठे.
शिल्पा रोंघे

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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।