Friday, February 26, 2021

आज की औरत

 

सदियों बाद

अपने अधिकारों को लेकर

जागी है,

वो तन के अलावा

मन भी रखती है।

कभी समाज की बेड़ियों से मुक्त होने के

लिए लड़ती है तो कभी दबे कुचले अधिकारों

की बात करती है।

पुरूष की परछाई बनकर रहे

आजीवन क्या वही औरत

कहलाने का दर्जा रखती है

ऐसे कई सवाल खड़े करती है।

जो आज की औरत है

क्या सही है या गलत

है उसके लिए

ये अगर सोचने की आजादी

रखती है तो कौन सी ऐसी भूल करती है।

शिल्पा रोंघे

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