कभी जलेबी सा मीठा.
तो कभी उसकी तरह उलझा हुआ सा.
कभी नीम सा कड़वा
तो कभी उसके अर्क से बनीं दवा सा.
कभी गुलाब सा महकता
तो कभी उसी गुलाब की रखवाली
करता चुभता हुआ कांटा सा.
किसी के लिए सांस
तो किसी के लिए
इबादत ही
होता है "प्रेम"
शिल्पा रोंघे
तो कभी उसकी तरह उलझा हुआ सा.
कभी नीम सा कड़वा
तो कभी उसके अर्क से बनीं दवा सा.
कभी गुलाब सा महकता
तो कभी उसी गुलाब की रखवाली
करता चुभता हुआ कांटा सा.
किसी के लिए सांस
तो किसी के लिए
इबादत ही
होता है "प्रेम"
शिल्पा रोंघे
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