Friday, December 29, 2023

आत्ममुग्धता

खुद को श्रेष्ठ साबित करने में लगे हैं कुछ लोग,

श्रेष्ठ लोगों से ज्यादा, दुनिया को  श्रेष्ठ बनाने वालों की ज़रूरत है.

आत्ममुग्धता अब चलन बन चुकी है.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, December 27, 2023

ना अब कोई

ना अब कोई बेरोजगारी पर लिखता है.

ना अब कोई बढ़ती आबादी या घटते संसाधन पर लिखता है.

ना अब कोई भाई -भतीजावाद

पर लिखता है ना भाषावाद पर लिखता है.

ना अब कोई

महिलाओं  की   

की  तरफ  हो रहे  ज़ुल्म पर लिखता है.

क्या बाजार में अब कलम सोने की और कागज़ रेशम का मिलता है?  


शिल्पा रोंघे

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...