देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, प्राण ले रही गर्मी, अब तो जीवन में कुछ श्वास भर।
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
Sunday, June 2, 2024
Saturday, June 1, 2024
आखिरी ख़त
हम भी किसी का पहला और आखिरी प्यार होते, हम भी किसी का पहला और आखिरी ख़त होते, अगर हम भी दौलत वाले और खूबसूरत होते।
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मेघा
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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मत करना कभी किसी गैर पर भरोसा आंखे बंद करके नुरानी चेहरा भी मुरझा, जाएगा. कभी खुद पर जी खोलकर करके तो देख भरोसा मुरझाया हुआ चेहरा भी...
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दुख या संघर्ष किसी इंसान को दो तरह के इंसान में बदल देता है. एक पत्थर दिल इंसान में जो किसी के दर्द को समझ नहीं पाता या दूसरा व्यक्ति जो हम...
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करते है याद जब बचपन के वो दिन तो सोचते है जाने कैसे दिखते होंगे तुम ....... रोज स्कूल से आते वक्त मेरे घर के सामने से गुजरते थे तु...