लोहे की दुकान पर, जो हीरे की कीमत पूछने जाओगे
तो ठगे ही रह जाओगे।
इससे अच्छा तो तुम कोयले खान
में रहकर ही चमकदार बन जाओगे।
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
लोहे की दुकान पर, जो हीरे की कीमत पूछने जाओगे
तो ठगे ही रह जाओगे।
इससे अच्छा तो तुम कोयले खान
में रहकर ही चमकदार बन जाओगे।
शिल्पा रोंघे
थोड़ा थोड़ा अंधेरा भी भाता है मुझे,
जब रोशनी से आंखे चौंधियाने लगे।
दीये की क्या ज़रुरत जब
जुगनू और चांद सितारे ही
रास्ता दिखाने लगे।
शिल्पा रोंघे
हर कविता लिखने वाले के ज़हन में कोई हो ये ज़रुरी नहीं।
सजती हूं, संवरती हूं।
खुद को आईने में निहारती भी हूं।
जो भी करती हूं खुद की ख़ुशी के लिए
करती हूं किसी को रिझाने का इरादा
नहीं रखती हूं।
नारी हूं तो क्या हुआ
इतनी तो आज़ादी मैं
भी रखती हूं।
शिल्पा रोंघे
नहीं चाहत मुझे अब
मौसमी पत्तें की।
सींच सकु भावनाओं के
जल से अब बस वही
पौधा चाहिए।
गुलाब नहीं, मुझे तो
उसकी
कलम चाहिए।
इसके अलावा कुछ और
नहीं मंजूर मुझे,
बिल्कुल भी नहीं
चाहिए।
शिल्पा रोंघे
इक दिन ऐसा होगा
जब इल्म होगा उसे
कि क्या हकीकत है
और क्या है फ़साना
कहती आई है दुनिया सदियों से सच है
वो या लिखेगी वो खुद ही
अपने लफ़्जों का तराना।
शिल्पा रोंघे
अंबर को छूने की
ख़्वाहिश रखते है,
लेकिन ज़मीन से जुड़े
रहना भूलते नहीं।
सशक्त लोग हमेशा आगे
देखते है।
पलटकर पीछे नहीं।
शिल्पा रोंघे
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...