Saturday, December 26, 2020

गुलाब

 

नहीं चाहत मुझे अब मौसमी पत्तें की।

सींच सकु भावनाओं के जल से अब बस वही

पौधा चाहिए।

गुलाब नहीं, मुझे तो उसकी

कलम चाहिए।

इसके अलावा कुछ और नहीं मंजूर मुझे,

बिल्कुल भी नहीं चाहिए।

शिल्पा रोंघे  

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