Monday, December 28, 2020

जुगनू

 

थोड़ा थोड़ा अंधेरा भी भाता है मुझे,

जब रोशनी से आंखे चौंधियाने लगे।

दीये की क्या ज़रुरत जब

जुगनू और चांद सितारे ही

रास्ता दिखाने लगे।

शिल्पा रोंघे

 

 

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...