सफाई देने का शौक है तो अपने
घर को चमका दो।
मन भी हल्का होगा
और तन भी स्वस्थ रहेगा।
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
सफाई देने का शौक है तो अपने
घर को चमका दो।
मन भी हल्का होगा
और तन भी स्वस्थ रहेगा।
शिल्पा रोंघे
इस बार संक्रांति कुछ इस तरह मनाओं
पतंग चाहे जितनी भी उड़ाओं, नायलॉन के
मांझे से दूरी सब बनाओ।
शिल्पा रोंघे
ख़्याली पुलाव से ज़िंदगी नहीं चलती मालूम है मुझे।
लेकिन एक ख़्याल ही नींव डालने के लिए काफी है।
घूमना जारी था उसका
दिन और रात।
रुक जाए इंसान के कदम
भले ही, मिट्टी की
बनी दुनिया कहां रुकती
है और थकती है।
ये सफर नहीं दो चार
दिन का ये तो कहानी
है करोड़ों सालों की।
चाहे धूप हो या घनघोर अंधेरा
चाहे हो भारी बरसात या
सूखे का डेरा।
भूख और प्यास का अहसास उसे कहां ?
वो तो पेड़ पौधे, फल और
पानी समेटे है
आंचल में अपने ।
जो करती है भरण पोषण
सबका
उसे अपनी सुध ही कहां ?
शिल्पा रोंघे
चलो अब ख़्वाहिश उसी
की रखेंगे जो मुक्कमिल ना हो सके, पहले से ये मालूम हो।
कुछ इस तरह से बेवजह
की आफ़तों से छुटकारा कर लो।
ख़्वाब को ख़्वाब ही
रहने दो।
हकीकत की ज़मीन पर गिरा
कर उसे मटमैला ना होने दो।
शिल्पा रोंघे
ख़ामखा हो जाते है बदनाम वो लोग, जो दिल के सच्चे होते हैं।
साफ़गोई को ना समझने वाले अक्सर कान के कच्चे होते हैं।
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...