Wednesday, November 2, 2016

कभी कभी ना कुछ कहने

कभी कभी ना कुछ कहने
का मन करता है 
ना कुछ लिखने का मन 
करता है
पर तय है 

जब चीरे लगेंगे
दिल पे
तो होगा कुछ यूं
कि उस लहू की स्याही
से पूरी किताब ही
लिखी जाए
जिसमें हो बातें
कुछ अनकही 

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...