Friday, September 13, 2019

गायब होती पीढ़ियां

अब गायब हो रही वो पीढ़ी
जो रफ्फू कर लेती थी कपड़ों के
साथ अपने सपनों को।

अब गायब हो रही वो पीढ़ी
जो मिट्टी के बर्तन में स्वाद पकाती थी।
चूल्हे पर सिकती रोटी संग
भविष्य की पीढ़ियां महकाती थी।

अब गायब हो रही वो पीढ़ी जो सिलबट्टे
पर लहसून, मिर्ची, कैरी का जायका पीसा करती थी
जीवन के खट्टे मीठे पलों का आनंद लिया करती थी।

अब गायब हो रही वो पीढ़ी जो घर घर
कथा सत्संग सुनने जाती थी और बड़ी आस्था से सुनाती थी।

कठपुतली कला की तरह
तरह वो भी एक दिन अप्रचलित
हो जाएगी, श्वेत श्याम चित्रों में
सिमटकर रह जाएगी।
साथ अपने वो कहावतें,
किस्से कहानियां, समझाइशे भी ले जाएगी।
शिल्पा रोंघे


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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।