Tuesday, October 13, 2020

उस मोड़ पर

 

रुमानी बातों की भी इक उम्र होती है.

उम्र के इक मोड़ पर आकार लगता

है जैसे सब कुछ हो गया हो बेमानी जनाब.

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...