अब क्या कहूं मैं अपने दिल का अरमान।
सूखे पत्तों में भी हरियाली ढ़ूंढने की आदत है
मेरी।
पत्थरों पर लकीरों को खींच
खींचकर ज़िंदगी
से भरी तस्वीर
उकेरने की फ़ितरत है
मेरी।
अंधेरी रातों को निहारने
और दिल के उजालों को
शुक्रिया करना ही बंदगी है मेरी।
शिल्पा रोंघे
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