हूं बेजुबां तो क्या
है लफ़्ज मुझमें भी बाकी.
तारीख़ देखने की मुझे
क्या ज़रूरत रंग बदलते,
झड़ते, नए आते पत्तों को
देखकर मौसम का अंदाज़ा
लगाना है काफी.
शिल्पा रोंघे
है लफ़्ज मुझमें भी बाकी.
तारीख़ देखने की मुझे
क्या ज़रूरत रंग बदलते,
झड़ते, नए आते पत्तों को
देखकर मौसम का अंदाज़ा
लगाना है काफी.
शिल्पा रोंघे
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