इंसान रईस हो ना हो।
शरीफ़ ज़रुर होना चाहिए।
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
अब क्या कहूं मैं अपने दिल का अरमान।
सूखे पत्तों में भी हरियाली ढ़ूंढने की आदत है
मेरी।
पत्थरों पर लकीरों को खींच
खींचकर ज़िंदगी
से भरी तस्वीर
उकेरने की फ़ितरत है
मेरी।
अंधेरी रातों को निहारने
और दिल के उजालों को
शुक्रिया करना ही बंदगी है मेरी।
शिल्पा रोंघे
उतनी भी बुरी जगह नहीं ये दुनिया जितना कुछ लोग समझते हैं।
अक्सर जीवन के मीठे और कड़वे अनुभव ही इंसान का नज़रिया बदलकर रख देते हैं।
शिल्पा रोंघे
रुमानी बातों की भी इक उम्र होती है.
उम्र के इक मोड़ पर आकार लगता
है जैसे सब कुछ हो गया हो बेमानी जनाब.
शिल्पा रोंघे
सात समुंदर पार है।
या चांद के उस पार है।
दिल तो ख़्वाबों के
उड़नखटोले पर,
तो कभी नाव पर सवार है।
कुछ ऐसा ये पाबंदियों का दौर
ना जाने कहां इस दिल का ठौर है।
किस्मत तुम्हें यूं चौंकाएगी।
गलत शख़्स से सही,
सही शख़्स से गलत
वक्त पर रुबरु
करवाएगी।
शिल्पा रोंघे
मत घोंट गला तू अपने अरमानों किसी के लिए, बेइंतिहा।
कि अपनी ही सांसे काम आती है
खुद को ज़िंदा रखने के लिए।
हमराही
सिर्फ अधिकार जताने की बजाए
साथ देने वाला हो
तो कितना ही दुर्गम हो
रास्ता पार हो ही जाता है।
वरना ज़िंदगी का सफ़र अकेले ही
भला।
शिल्पा रोंघे
तो क्या हुआ गर जमीन जुड़ा हूं।
अपनी ख़ुशी चुनने का हक मैं भी रखता हूं।
सही और गलत क्या इसकी परख रखता हूं।
नहीं मालूम इल्म की बड़ी बड़ी बातें।
धूप हो या बारिश हर मौसम
में फलने फूलने की समझ मैं भी रखता हूं।
शिल्पा रोंघे
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...