Sunday, March 7, 2021

नारी दिवस

 गुलाब की पंखुडियों सी नाज़ुक भावना रखती हूं।

कोमल मन के साथ लोहे सा सख़्त हौंसला भी रखती हूं।
इंद्रधनुषी अहसासों के रंग
से जीवन की जीवंत तस्वीर बनाती हूं।
सिर्फ चूल्हे चौके तक सीमित नहीं।
दुनियादारी की भी ख़बर रखती हूं।
अबला नहीं आज की नारी
मैं, सबल मन भी रखती हूं।
शिल्पा रोंघे
#नारी दिवस# सशक्तिकरण

Friday, March 5, 2021

इंसानियत की ऐसी मिसाल

 

लौ से लौ जलती है

बुझती नहीं।

गलती अपनी हो तो रिहाई चाहिए।

किसी और कि हो तो कैद चाहिए।

कोशिश हो ऐसी कि

बात हमेशा बराबरी की होनी चाहिए।

इंसानियत की ऐसी मिसाल हर

रोज पेश होनी चाहिए।

शिल्पा रोंघे

 

Wednesday, March 3, 2021

इंसानियत

 

जानवरों के जंगल में एक इंसान का मिलना भी खबर,

और इंसानों की बस्ती में जंगल से जानवर का आना भी खबर।

काश इंसानों की बस्ती में इंसानियत का मिलना भी इक दिन बने ख़बर।

शिल्पा रोंघे

Tuesday, March 2, 2021

कृति

किसी की लिखी कृति में जबरन खुद को बैठाने की

कोशिश ना करे, खुद भी चैन से रहिए और दूसरों को भी रहने 

दें।

शिल्पा 

Friday, February 26, 2021

आज की औरत

 

सदियों बाद

अपने अधिकारों को लेकर

जागी है,

वो तन के अलावा

मन भी रखती है।

कभी समाज की बेड़ियों से मुक्त होने के

लिए लड़ती है तो कभी दबे कुचले अधिकारों

की बात करती है।

पुरूष की परछाई बनकर रहे

आजीवन क्या वही औरत

कहलाने का दर्जा रखती है

ऐसे कई सवाल खड़े करती है।

जो आज की औरत है

क्या सही है या गलत

है उसके लिए

ये अगर सोचने की आजादी

रखती है तो कौन सी ऐसी भूल करती है।

शिल्पा रोंघे

Sunday, February 7, 2021

प्रेम दिवस

 कविता – तेरे सिवा


तेरे सिवा अब मैं जाऊं कहां ?


तेरा बिना अब मैं मन बहलाऊं कहां ?


जो था मेरा वो तू ही तो था इकलौता आभूषण।


गुम गया ना जाने कहां? खो गया कहां मैं जानूं क्या? तुम ही बता दो दर्दे दिल मैं अब सुनाऊं कहां ?


तुम ही इबादत हो, तुम ही मन मंदिर के देवता।


जानते हो ये बात तो तुम भी अच्छी तरह कि आदत है छूट जाती है, तुझसे मोहब्बत को इबादत है बना लिया, क्या वो आसानी से छोड़ी जा सकती है भला ?


शिल्पा रोंघे


# कल्पना# गुलाब दिवस# प्रस्ताव दिवस# देसी वैलेन्टाइन दिवस सप्ताह# गोपाल# गोपी# भारतीय संस्कृति।

Tuesday, February 2, 2021

फ़ानी दुनिया

 

यूं लापता हो गए है फ़ानी दुनिया में

अहसास हमारे, कि हम ही हमसे पूछते है

कि क्या हम वहीं हम है ? जो आईने में मिलते है

रोज खुद से।

शिल्पा रोंघे

Tuesday, January 19, 2021

सफाई

 

सफाई देने का शौक है तो अपने

घर को चमका दो।

मन भी हल्का होगा

और तन भी स्वस्थ रहेगा।

शिल्पा रोंघे

Wednesday, January 13, 2021

संक्रांति

 

इस बार संक्रांति कुछ इस तरह मनाओं

पतंग चाहे जितनी भी उड़ाओं, नायलॉन के

मांझे से दूरी सब बनाओ।

शिल्पा रोंघे

Tuesday, January 12, 2021

ख़्याली पुलाव

 

ख़्याली पुलाव से ज़िंदगी नहीं चलती मालूम है मुझे।

लेकिन एक ख़्याल ही नींव डालने के लिए काफी है।

Monday, January 4, 2021

धरती

 

घूमना जारी था उसका दिन और रात।

रुक जाए इंसान के कदम भले ही, मिट्टी की

बनी दुनिया कहां रुकती है और थकती है।

ये सफर नहीं दो चार दिन का ये तो कहानी

है करोड़ों सालों की।

चाहे धूप हो या घनघोर अंधेरा

चाहे हो भारी बरसात या सूखे का डेरा।

भूख और प्यास का अहसास उसे कहां ?

वो तो पेड़ पौधे, फल और पानी समेटे है

आंचल में अपने ।

जो करती है भरण पोषण सबका

उसे अपनी सुध ही कहां ?

 

शिल्पा रोंघे

 

Saturday, January 2, 2021

ख़्वाब

 

चलो अब ख़्वाहिश उसी की रखेंगे जो मुक्कमिल ना हो सके, पहले से ये मालूम हो।

कुछ इस तरह से बेवजह की आफ़तों से छुटकारा कर लो।

ख़्वाब को ख़्वाब ही रहने दो।

हकीकत की ज़मीन पर गिरा कर उसे मटमैला ना होने दो।

शिल्पा रोंघे

Friday, January 1, 2021

साफ़गोई

 

ख़ामखा हो जाते है बदनाम वो लोग, जो दिल के सच्चे होते हैं।

साफ़गोई को ना समझने वाले अक्सर कान के कच्चे होते हैं।

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...