Tuesday, May 28, 2019

उनकी निगाहों के साये

कुछ तो बात होगी उनकी मुस्कान में 
जो भरी भीड़ में भी निगाह सिर्फ उन्हीं 
पर जाकर टिक गई.

कुछ तो बात होगी उन आंखों में जो 
रहती थी हमेशा उठी, देखते ही उन्हें 
झुक गई.

क्या पता लिखा है या नहीं मिलना उनसे 
मेरा, नहीं दिखते पुरानी राहों पर अब वो पहले की तरह.

पर ना जाने क्यों दिल को है ये वहम कि 
वो गुजरेंगे कभी इस राह पर फिर कभी.

शायद उन आंखों को भी हो तलाश मेरी,
जैसे कि हर कदमों की छापों पर ढूंढती 
है उनकी तस्वीर निगाहें मेरी.

शिल्पा रोंघे 

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...