कुछ तो बात होगी उनकी मुस्कान में
जो भरी भीड़ में भी निगाह सिर्फ उन्हीं
पर जाकर टिक गई.
कुछ तो बात होगी उन आंखों में जो
रहती थी हमेशा उठी, देखते ही उन्हें
झुक गई.
क्या पता लिखा है या नहीं मिलना उनसे
मेरा, नहीं दिखते पुरानी राहों पर अब वो पहले की तरह.
पर ना जाने क्यों दिल को है ये वहम कि
वो गुजरेंगे कभी इस राह पर फिर कभी.
शायद उन आंखों को भी हो तलाश मेरी,
जैसे कि हर कदमों की छापों पर ढूंढती
है उनकी तस्वीर निगाहें मेरी.
शिल्पा रोंघे
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