Saturday, March 16, 2024

हुनर

भौतिक युग में कविता, कहानी को ज़िंदा रखना एक उपलब्धि ही तो है। सिर्फ लिखना ही नहीं, पढ़ना और समझना भी एक तरह का हुनर ही है।


No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...