Monday, March 4, 2024

आशियाना,पंछी

 कहां बनाऊ घरौंदा कि अब डाली ही नहीं बची.

कैसे मिटाऊं भूख, प्यास कि अब हरियाली ही नहीं बची.

हाल अब है ऐसा, छीन के मेरा आशियाना

अब वो इंसान मुझे ही

गुनहगार कहते हैं।

शिल्पा रोंघे

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