नफ़रत की चिंगारी दिल में उतनी ही सुलगने दो
कि बुझाने में परेशानी ना हो।
मोहब्बत भी उतनी ही रखो कि
भूलाने में मुश्किल ना हो।
बातों में प्यार होता है आजकल
लेकिन इरादों में नहीं।
लगता है कि जैसे चीनी में चाय है
मगर चाय में चीनी ही नहीं।
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
नफ़रत की चिंगारी दिल में उतनी ही सुलगने दो
कि बुझाने में परेशानी ना हो।
मोहब्बत भी उतनी ही रखो कि
भूलाने में मुश्किल ना हो।
बातों में प्यार होता है आजकल
लेकिन इरादों में नहीं।
लगता है कि जैसे चीनी में चाय है
मगर चाय में चीनी ही नहीं।
शिल्पा रोंघे
उम्मीद भी बिकने लगी अब
अपनापन गर अपनों से ना मिल सका
तो फिर बाज़ार में क्या ख़ाक मिलेगा।
झांककर देखा अपने अंदर
तो वो ख़ुशियां भी मिल गई
जिनसे वाकिफ़ नहीं थे कभी।
शिल्पा रोंघे
राह कभी गलत नहीं होती
पता गलत हो सकता है।
कभी कभी रास्ता नहीं
मंजिल ही बदल लेनी पड़ती है।
शिल्पा रोंघे
हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा देते हैं।
सुरसा की तरह फाड़ कर मुंह ड्रैगन ये इशारा देता है।
कि हर पड़ोसी भरोसे के काबिल नहीं होता
अक्सर मीठा- मीठा बोलकर
वो ही पीठ में छुरा घोंपा करते है।
शिल्पा रोंघे
जो मिला नहीं ज़िंदगी
की सुबह में, चाहे शाम में मिले।
नहीं पता कौन है वो,
लिखा है नाम जिसका हाथों की लकीरों में।
हां ख़्वाहिश है यही
बस, जब भी मिले पराया सा ना लगे।
शिल्पा रोंघे
कभी मुराद बिना मांगे
ही पूरी हो जाएगी तो कभी चाहकर भी अधूरी रह जाएगी।
कभी वसंत होगा तो
पतझड़ भी होगा।
कभी मीठा तो कभी कड़वा
जीवन का अनुभव होगा।
समझाने वाला समझा
देगा।
सुनने वाला सब्र के
साथ सुन लेगा।
जो हमदर्द होगा वो
हमदर्दी रखेगा।
कोई अच्छी सलाह देगा,
तो कोई मन को दिलासा देगा।
हर दोस्त और शख़्स
किरदार अपना निभा देगा।
सच है ये भी आखिरकार जिंदगी
जीने का हौंसला
हर शख़्स को खुद ही
जुटाना होगा।
शिल्पा रोंघे
कुछ इंसानों को सब कुछ मिल जाता है फिर भी वो नाख़ुश रहते हैं।
उनसे अच्छे तो वो लोग है जो आभावों में भी ख़ुश रहना सीख जाते हैं।
शिल्पा रोंघे
यूं
ही नहीं होता नाराज़ किसी से कोई,
ज़रुर
उस बेरुख़ी के पीछे कोई तो वजह होगी।
गर
करती होगी कुदरत मनमानी,
तो
ज़रुर इसके पीछे इंसान की ही खुदगर्ज़ियां छिपी होंगी।
शिल्पा
रोंघे
पूरा वक्त आत्ममंथन को ही दे देती हूं।
तो मेरा मुकाबला मुझ से ही होता है हर रोज।
हां प्रतिस्पर्धा मैं खुद से ही करती हूं,
खुद ही अपनी कमियां गिनती हूं और दूर करती हूं।
इस तरह वाद- विवाद से खुद
को दूर रखती हूं।
शिल्पा रोंघे
मेरी वजह से दिल ना
दुखे किसी का ये ज़रुरी है,
लेकिन अपने दिल की
सेहत का ध्यान रखना तो सिर्फ मेरी
ही जिम्मेदारी है।
कोई मुझे पसंद करता है
या नहीं, इसकी फ़िक्र
करना मेरा काम नहीं, क्योंकि इंसान
की ज़िंदगी
की मियाद सदियों सी
लंबी होती नहीं है।
नदी की तमन्ना........
सात समंदर में से उस समंदर मिल जाना है,
जिसकी सीप भी मैं, मोती भी मैं
साहिल भी मैं और लहरों में उठने वाली मौज भी मैं।
बूंदों से बनने वाला संगीत भी मैं।
और हां सागर की आखिरी प्रीत भी मैं।
मध्यम वर्ग अब खेत जोतने
वाले उस बैल की तरह बन
चुका है, जिसे पसीना बहाते हुए कर्तव्य तो निभाना है, लेकिन अपने अधिकारों की बात पर गुपचुप बैठ जाना है।
संस्कारों की पाठशाला में पढ़ने वाला बच्चा अब नैतिक शिक्षा के मायने ढूंढने में लगा है।
बिना शोर मचाए तिनके के सहारे तैरने लगा है, अंजान मंजिल की आस में
क्योंकि वो इसे ही अपनी नियती मान चुका है।
शिल्पा रोंघे
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...