Thursday, June 11, 2020

कुदरत की खुदगर्ज़ियां

यूं ही नहीं होता नाराज़ किसी से कोई,

ज़रुर उस बेरुख़ी के पीछे कोई तो वजह होगी।

गर करती होगी कुदरत मनमानी,

तो ज़रुर इसके पीछे इंसान की ही खुदगर्ज़ियां छिपी होंगी।

शिल्पा रोंघे


No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...