Saturday, June 6, 2020

मध्यम वर्ग

मध्यम वर्ग अब खेत जोतने

वाले उस बैल की तरह बन

चुका है, जिसे पसीना बहाते हुए कर्तव्य तो निभाना है, लेकिन अपने अधिकारों की बात पर गुपचुप बैठ जाना है।

संस्कारों की पाठशाला में पढ़ने वाला बच्चा अब नैतिक शिक्षा के मायने ढूंढने में लगा है।

बिना शोर मचाए तिनके के सहारे तैरने लगा है, अंजान मंजिल की आस में

क्योंकि वो इसे ही अपनी नियती मान चुका है।

 

शिल्पा रोंघे


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