Thursday, February 22, 2024

दौर में



"सोच समझ कर रूठना इस दौर में, क्योंकि सताने वाले तो बहुत मिलेंगे, लेकिन मनाने वाले बहुत कम।"

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मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...