Monday, February 26, 2024

तितली

इतराती है, इठलाती है, शर्माती है, कहां जान पाया है उसे कोई आज तक? दिखे कोई मनुष्य तो झट से गायब हो जाती है, लगता है ऐसा कि कई फूलों से रंग चुरा कर वह अपने पंखों पर सजाती है. मेरे सपनों में जब भी वह आती है, मुस्कुराती है और गीत कुदरत के गाती है.

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मेघा

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