इतराती है, इठलाती है, शर्माती है, कहां जान पाया है उसे कोई आज तक? दिखे कोई मनुष्य तो झट से गायब हो जाती है, लगता है ऐसा कि कई फूलों से रंग चुरा कर वह अपने पंखों पर सजाती है. मेरे सपनों में जब भी वह आती है, मुस्कुराती है और गीत कुदरत के गाती है.
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
Monday, February 26, 2024
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मेघा
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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मत करना कभी किसी गैर पर भरोसा आंखे बंद करके नुरानी चेहरा भी मुरझा, जाएगा. कभी खुद पर जी खोलकर करके तो देख भरोसा मुरझाया हुआ चेहरा भी...
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दुख या संघर्ष किसी इंसान को दो तरह के इंसान में बदल देता है. एक पत्थर दिल इंसान में जो किसी के दर्द को समझ नहीं पाता या दूसरा व्यक्ति जो हम...
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विश्व मानसिक स्वास्थ दिवस पर मन, वचन और कर्म इन तीनों का उपयोग किसी का दिल दुखाने के लिए ना करें. आओं आज के दिन हम ये संकल्प करें. कि...
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