अब महल भी होंगे,खिड़कियाँ भी होंगी
लेकिन साफ
साँसें
नहीं होंगी।
रंग-बिरंगे छाते भी होंगे बाजार में,
लेकिन बारिश कम होगी।
पशु-पक्षी करेंगे इंसानी बस्ती का रुख,
ख़ौफ़ में मानव यहाँ-वहाँ दौड़ेंगे।
जब नहीं बचेंगे जंगल, तब तवे सी तपेगी धरा,
हम तो सुख-सुविधाओं में रहेंगे, लेकिन
गायब हो जाएगी अगली पीढ़ी, तो क्या
यही है
कलियुग
में सफलता की सीढ़ी।
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