मैंने सोचा चांद पर रहते है मितवा.
तो खत वहीं भेज दिया.
हूं इस उलझन में बरसते हुए नूर
को इनकार समझूं, इकरार समझूं
या उनके दिल की कश्मकश समझूं.
दीदार ए यार है, या सदियों का इंतज़ार
इस नादान दिल को कुछ समझ आता
नहीं.
शिल्पा रोंघे
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