काश कोई उनसे भी पूछता पीले हाथों
की बात.
ख़ामखा क्यों ज़माना एक औरत से
ही लगाता है हिना की उम्मीद.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
No comments:
Post a Comment