इतनी दूर भी ना ले जाना ज़िंदगी,
कि किसी को लौट के आने का इंतज़ार
ना हो, कि दिल कोई बेकरार ना हो.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
No comments:
Post a Comment