अज़ीब है दुनिया के रिवाज़ भी,
रिश्ता जोड़कर रखे तब समझते
है मतलब निकलता होगा.
रिश्ता तोड़ लें तो समझते है, कोई और
मकसद होगा.
रिश्तों की जोड़ तोड़
में उलझकर रह जाता है
एक नर्मदिल इंसान अकेला.
चाहे क्यों ना हो
ये दुनिया
चार दिन का मेला.
शिल्पा रोंघे
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