बंद करके रख दो घर की किसी अलमारी में नमक या मरहम, क्योंकि भरे हुए ज़ख़्म पर ये दोनों ही काम नहीं करते हैं। ये जान लो, मुझसे नफ़रत या मोहब्बत करने वालों।
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
बंद करके रख दो घर की किसी अलमारी में नमक या मरहम, क्योंकि भरे हुए ज़ख़्म पर ये दोनों ही काम नहीं करते हैं। ये जान लो, मुझसे नफ़रत या मोहब्बत करने वालों।
शिल्पा रोंघे
बिना किसी शर्त के प्रेम करे, राधा सी ऐसी
प्रेयसी
बनो।
मुश्किलों में दे
पति का साथ, ऐसी
पत्नी सीता सी तुम बनो।
जीजा बाई की तरह माँ बनो, जो दे अपने बच्चों को साहस की प्रेरणा.
रानी लक्ष्मीबाई, और रानी दुर्गावती की तरह
वीरता की मूर्ति बनो।
मीरा सी भक्त बनो, जो विपत्तियों में भी भक्ति का राग ना छोड़े।
महिला सशक्तिकरण की
करे जो बिना डरे बात, सावित्रीबाई फुले सी तुम नारी बनो।
शिल्पा रोंघे
ज़िंदगी को चलाने के लिए इंसान शहरों की तरफ भागता है और फिर अपनी सांसों को जिन्दा रखने के लिए जंगल, जल किनारे और गाँव की तरफ लौटता है।
इतराती है, इठलाती है, शर्माती है, कहां जान पाया है उसे कोई आज तक? दिखे कोई मनुष्य तो झट से गायब हो जाती है, लगता है ऐसा कि कई फूलों से रंग चुरा कर वह अपने पंखों पर सजाती है. मेरे सपनों में जब भी वह आती है, मुस्कुराती है और गीत कुदरत के गाती है.
चाटुकारिता भी अपनी सीमा पार कर चुकी है। कुछ लोग बेरोज़गारी को मन का वहम मानते हैं. हरा चश्मा लगाने से सूखी घास, हरी नहीं हो जाती है.
कुछ मर्द औरतों में सिर्फ़ खूबसूरती देखते हैं, और कुछ औरतें मर्दों में सिर्फ़ समझदारी ढूंढती हैं। बस, यही सोच दोनों को बेमेल बना देती है।
"सोच समझ कर रूठना इस दौर में, क्योंकि सताने वाले तो बहुत मिलेंगे, लेकिन मनाने वाले बहुत कम।"
हर किसी के नसीब में नहीं होती सच्ची मोहब्बत, ये समझ लेना भी एक तरह की समझदारी है। ना बरबाद करो ज़िंदगी के अनमोल लम्हों को यूँ ही, क्योंकि यहां हर सांस कीमती है। कल क्या होगा? किसने देखा? लेकिन खुद से मोहब्बत कर लेना भी एक तरह की ईमानदारी और वफ़ादारी है।
कहते हैं लोग प्यार सूरत नहीं, सीरत देख कर होता है, लेकिन शायरी में हमेशा महबूबा चांद सी और महबूब रात सा क्यों होता है?
गुमशुदा की तलाश जारी रखो, लेकिन सच्चे प्यार की उम्मीद न रखो, क्योंकि इंटरनेट के आविष्कार साथ ही यह गायब हो चुका है.
जब लोगों के पास हाथ से प्रेमपत्र लिखने और पढ़ने का समय न हो, तब इस अधीर युग में सच्चे प्रेम की बात करना बेमानी है।
शिल्पा रोंघे
अब महल भी होंगे,खिड़कियाँ भी होंगी
लेकिन साफ
साँसें
नहीं होंगी।
रंग-बिरंगे छाते भी होंगे बाजार में,
लेकिन बारिश कम होगी।
पशु-पक्षी करेंगे इंसानी बस्ती का रुख,
ख़ौफ़ में मानव यहाँ-वहाँ दौड़ेंगे।
जब नहीं बचेंगे जंगल, तब तवे सी तपेगी धरा,
हम तो सुख-सुविधाओं में रहेंगे, लेकिन
गायब हो जाएगी अगली पीढ़ी, तो क्या
यही है
कलियुग
में सफलता की सीढ़ी।
दुनिया के कयासों पर नहीं, सिर्फ अपने प्रयासों पर ध्यान दो, क्योंकि सिर्फ यही तुम्हारे बस में है।
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...