Monday, February 19, 2024

मिट्टी

मिट्टी से उपजा हूँ?, तो मिट्टी से परहेज कैसा? धूप, पानी, और धूल मेरे लिए हैं, बिन मांगे मिले दहेज जैसा?

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मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...