एक दीवाने का ख़त-कविता
हंसा ना कर.
ना जाने क्यों लगता है मुझे
गुलाब के फूल गिर रहे है मुझ पर.
तेरा ख़्याल बनकर.
सुन ओ दीवानी
यूं बेवक्त उदास हुआ ना कर.
लगता है ना जाने क्यों
लगता है तेरे आंसू बरस
रहे है मुझ पर सावन बनकर.
सुन ओ दीवानी
यूूं रूठा ना कर मुझसे.
लगता है बिजलियां कड़क
रही मुझ पर तेरी नाराजगी
बनकर.
महक रहा हूं, भीग रहा हूं,
तुझे ही याद कर रहा हूं शायद
इसलिए कह रहा हूं मैं
चाहती हो मेरी ख़ैरियत
तो अपनी अदाओं
से कह दो मौसम
की तरह मनमानी ना कर.
शिल्पा रोंघे
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