Thursday, June 28, 2018

दोहरी मानसिकता- व्यंग्य

दोहरी मानसिकता- व्यंग्य

लड़की :
पिता जी और पढ़ना चाहती हूं.

पिता: हो तो गई ग्रेजुएट, शादी में भी तो खर्चा होगा
अब रहने दो.

लड़का: ग्रेजुएट होकर भी नौकरी नहीं लगी अब क्या करूं ?

पापा: हमें कौन सा शादी में खर्चा करना है, जितना चाहे
        पढ़ ले.

लड़की : नया सामान ले लो.
पिताजी: रूक तेरे ब्याह के वक्त लुंगा और तुझे दे दूंगा हम पुराने सामान से काम चला लेंगे.

लड़का : नया सामान ले लो.
पिताजी: अगले बरस तेरी शादी में मिल ही जाएगा, चिंता क्यों करते हो.

लड़की : पिताजी क्या लड़का मेरे लायक है ?
पिताजी: लड़के की सूरत नहीं सीरत देखो.

लड़का : क्या मेरे लायक है लड़की ?
पिताजी: तुझे बिल्कुल सूट नहीं करती, क्या कहेंगे
लोग इतना अच्छा लड़का है.

लड़की: लड़के की पढ़ाई मेरे लायक है?

पिताजी : जिंदगी समझौते का नाम है.

लड़का: क्या लड़की की पढ़ाई मेरे लायक है.

पिताजी: बिल्कुल नहीं, सिर्फ सूरत से क्या होता
है बुद्धिमान भी तो हो.

       
लड़की: मैं नौकरी और घर के काम में संतुलन कैसे बना पाउंगी

पिताजी: सुबह जल्दी उठकर काम निपटाकर कर
चली जाना दफ़्तर.

लड़का: मुझे तो चाय बनाना भी नहीं आती, मेरी बीवी
काम से लौट कर आएगी तो मैं क्या कहूंगा.

पिताजी: ये तेरा काम नहीं, तेरी पत्नी का है
उसे कह देना ऐसी नौकरी ढूंढे की परिवार भी संभाल
सके.

शिल्पा रोंघे

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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।