Friday, June 7, 2019

चलो सखी

चलो सखी सांझ होने
आई, सूरज ने ली विदाई.

ठंडी हवा ने ली अंगड़ाई.
पत्तों ने जैसे मिलकर बजाई
हो शहनाई.

एक आम का पेड़ है मुहल्ले में.
जो देखता है राह हमारी.

चलो मिलकर बनाए झूला
एक.
जिस पर हम दोनों बैठेंगे
बारी बारी.
कभी तुम, कभी मैं छुएंगे
आसमान को.
कभी धरा पर तो कभी
अंबर में गूंजेगी हंसी
तुम्हारी और मेरी

शिल्पा रोंघे

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