दिल की पसोपेश
क्या मैं भी ?
शायद तुम ?
या
मैं भी ?
मुमकिन ?
या
नामुमकिन ?
अनसुनी, अनकही
आधी अधुरी सी
रह जाती है कुछ
कहानियां.
गर पहुंचती अंजाम
तक तो शायद होती कल्पना
से कई गुना ख़ुबसूरत.
शिल्पा रोंघे
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