Friday, June 14, 2019

दिल की पसोपेश

दिल की पसोपेश 

क्या तुम ?
क्या मैं भी ?

शायद तुम ?
या 
मैं भी ?

मुमकिन ?
या 
नामुमकिन ?

अनसुनी, अनकही 
आधी अधुरी सी 
रह जाती है कुछ 
कहानियां.

गर पहुंचती अंजाम 
तक तो शायद होती कल्पना 
से कई गुना ख़ुबसूरत.

शिल्पा रोंघे 

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