Monday, June 17, 2019

बारिश का चाँद

फिर छिप गया चांद काली घटाओं में,
लेकिन रात को नूर देना कहां
भूला है वो.

उसकी फ़ितरत ही है रोशनी देना 
चाहे रहे पर्दे में या रहे बेपर्दा.

शिल्पा रोंघे

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