काली बनों.
दुर्गा बनों.
आज की नारी
सौम्यता नहीं
कठोरता का आवरण
तुम पहनों.
बिना धार की कलम भी
क्या आ सकती है लिखने
के काम ?
अपनी रक्षा के लिए
तुम खुद ही कमर कसो.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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