बादल भेद कहां है करता.
सूखी नदियां जो देखती है उसका रस्ता
लहरों से उनकी झोली भर है देता.
बंजर जमीनें जो देखे उसका रस्ता
हरियाली से उसका दामन सजा है देता.
गलियां जहां देखती है कागज की कश्ती उसका
रस्ता.
बहता पानी बनकर उमंग है भरता.
बादल क्या जाने बड़ा और छोटा.
आसमान में रहकर भी जमीन से जुड़ा है रहता.
शिल्पा रोंघे
No comments:
Post a Comment