बड़ी ख़ामोशी से
सब कुछ सहेंगे अब
बारिश,धूप और पेड़ से गिरती
सूखी पत्तियों की चादर ओढ़
लेंगे हम.
भीड़ से दूर पहाड़ों को काटकर रास्ता
बनाकर चुपचाप से नदी
की तरह शहर से दूर कहीं
बहेंगे हम.
लेकिन सुना है तेरे खेत ख़लिहानों
से गुजरती है नदी की धारा कोई
उन्हें सींच देंगे हम.
लहलहाएंगे हरियाली का हिस्सा बनकर
तुमसे दूरी बनाकर भी
तुम्हारे काम आएंगे हम.
शिल्पा रोंघे
सब कुछ सहेंगे अब
बारिश,धूप और पेड़ से गिरती
सूखी पत्तियों की चादर ओढ़
लेंगे हम.
भीड़ से दूर पहाड़ों को काटकर रास्ता
बनाकर चुपचाप से नदी
की तरह शहर से दूर कहीं
बहेंगे हम.
लेकिन सुना है तेरे खेत ख़लिहानों
से गुजरती है नदी की धारा कोई
उन्हें सींच देंगे हम.
लहलहाएंगे हरियाली का हिस्सा बनकर
तुमसे दूरी बनाकर भी
तुम्हारे काम आएंगे हम.
शिल्पा रोंघे
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