Monday, April 30, 2018

फिर बारिश

फिर सौंधी मिट्टी की खुशबू ने घर में दस्तक दी है.
तेज हवाओं ने बुंदों से दोस्ती की है.
शहर में बेमौसम बारिश जो हुई है.

शिल्पा रोंघे

नशामुक्ति

नशामुक्ति

नशा "नाश" का दूसरा नाम है.
ये नाश करता है बुद्धि का.
ये नाश करता है धन का.
ये नाश करता है संबंधों का.
ये नाश करता है नैतिक मूल्यों का.
नाश नहीं निर्माण  की तरफ बढ़ो
युवाओं तुम नशामुक्त समाज बनाने
का संकल्प लो.

शिल्पा रोंघे

Sunday, April 29, 2018

घटते संसाधन

पाषाणयुग से वर्तमान तक

मनुष्य ने लिखी विकास की

अनोखी कहानी.

कटे जंगल,

सूखे ताल,

जंगली जानवर बन गए कहानियों का हिस्सा.

गमलों में लगे फूलों, बोतल बंद पानी, और चिड़ियाघर
को देखकर जी रहे है.

अब बच्चे भी बड़ों से पूछ रहे हैं कि
जंगल, ताल, और जानवर क्या सचमुच कभी
धरती का हिस्सा रहे हैं ?

शिल्पा रोंघे

Friday, April 27, 2018

हक की बात

छीन लिए जाए, अगर हक तुम्हारे कभी.
तो उदास होना नहीं.
वक्त कभी एक सा रहता नहीं.
कमल से ही सीखो, मटमैले पानी में उसके खिलने की दास्तान है लिखी.

शिल्पा रोंघे

Thursday, April 26, 2018

वाणी

किसी के मन को रखने के लिए झूठ ना कहना.

हां बेवजह पहुंच किसी के मन को ठेस
ऐसा सच भी ना कहना.

संभालकर करे इस्तेमाल वाणी का क्योंकि
इससे अनमोल नहीं जग में कोई गहना.

शिल्पा रोंघे
🙊🙉🙈

अपना और बेगाना

मानों जिसे अपना,जरूरी नहीं वो अपना हो.
ना मानों  जिसे अपना,जरूरी नहीं वो बेगाना
हो.
फसल की तरह होते है रिश्ते
पकने को कुछ वक्त तो दो.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, April 25, 2018

दिल की सुनो

दिल की सुनो और कहो ❤

गर साधते हो चुप्पी तो तुम्हे कायर का
दर्जा मिलेगा.

गर बोलते हो सच तो मुंहफट कहा जाएगा.

करोगे सोच समझकर बात तो
चालक कहा जाएगा.

दुनिया का दस्तूर है बाल की खाल निकालना.
इसलिए दिल की सुनो और वो जो बोले कहो.

शिल्पा रोंघे

दिल का अमीर

अमीर बनने के लिए ज़मीर बेचना
ज़रूरी नहीं है.

ये बात कौन समझाएं उन्हें जिन्होंने
बचपन में कछुए और खरगोश की
कहानी सुनी नहीं है.

दिल से फ़कीर और
जेब से अमीर होना किसी काम का नहीं है.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, April 24, 2018

अकेले ही कट जाता है सफर

हर सफ़र  में हमराही साथ हो ये ज़रूरी नहीं.

सफ़र कट जाता है अकेले ही.

मंजिल का रास्ता तो अक्सर दिखा देते है अजनबी भी.

शिल्पा रोंघे

कलम सिर्फ कला तक सीमित नहीं

कलम सिर्फ "कविता" और "कहानी"
की रचना तक  सीमित नहीं .

कलम गुलामी से स्वतंत्रता
के काल तक क्रांति का प्रतीक है रही.

कलम शांति और अमन की सूचक है रही.
कलम अधिकारों की रक्षक.
तो कभी सकारात्मक आलोचना की सूचक है
रही.

कलम विकास की पैरोकार है रही.
ना इसका कोई भार है ना ज्यादा कोई मोल है.

उठाना है तो सिर्फ कलम उठाना
क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति हर
इंसान का अधिकार है.

शिल्पा रोंघे
जिंदगी  की भाग दौड़ ने सुकुन भरी नींद को एक
सपना बना दिया.
गुजर गए अब ज़माने  वो बचपन के,
 जब मां ने गहरी नींद में सुलाने
के लिए चांद  और तारों को एक जगमगाती लोरी में सजा दिया.

शिल्पा रोंघे

Monday, April 23, 2018

काम की बात

कहते है लोग अक्सर भलाई का अब ज़माना रहा नहीं.
फिर क्यों अच्छी चीजें ही संग्रहालय में जाती है रखी.
बेफ़िजूल की चीजों को देखने की ख़्वाहिश किसमें है बची ?

शिल्पा रोंघे

तमन्ना

जीतने और इतिहास रचने की कोई तमन्ना नहीं है.
सुना है खुद से ही हार जाते है दुनिया जीतने वाले.

शिल्पा रोंघे

मौन

एक ही मौन के देखो कितने रूप.
कभी ध्यान है,
कभी निद्रा है मौन,
कभी उपासना है मौन,
कभी भोर
तो कभी रात का काला सन्नाटा है मौन,
ना पूरा "हां" ना पूरा "ना"
है मौन.
ना पूरा है ना अधूरा है
सचमुच एक रहस्य ही है मौन.

शिल्पा रोंघे

Sunday, April 22, 2018

किताबें

वर्ल्ड बुक डे

कभी ज्ञान देती है, तो कभी मनोरंजक होती है.
कभी यथार्थ से जुड़ी होती है, तो कभी कल्पना की उड़ान भरती है.
किताबें  इंसान की सबसे करीबी दोस्त
कल भी थी और आज भी है.

शिल्पा रोंघे

धरती का दिन, वर्ल्ड अर्थ डे

धरती का दिन, वर्ल्ड अर्थ डे

खेत -खलिहान ,फूल और फल, बेल और पत्ते
सब धरती की ही है देन.
धरती मां जो ठहरी
इन सौगातों का नहीं है कोई मोल.

शिल्पा रोंघे

Saturday, April 21, 2018

साइकिल दिलाओं मां

फिर नई साइकिल खरीदने को मन है करता.
जो स्कूल छोड़ने के बाद बन चुकी है किसी
कबाड़ का हिस्सा.

दो पहियों पर चलती
हवा को चीरती साइकिल
बन गई है बचपन की यादों का किस्सा.

उंची नीची, कच्ची  सड़कों पर
कभी स्कूल की ओर तो कभी खेल के मैदानों की तरफ़
दौड़ती साइकिल आज भी है ज़हन में जिंदा.

नहीं चाहिए दौलत और शोहरत मुझे,
हो सके तो एक बार फिर मुझे एक नई
साइकिल दिला देना मां.

जिसकी ट्रिंग ट्रिंग की आवाज को
बहुत मुश्किल लगता है भूलना.
हां कर दो ख्वाहिश पूरी ये मेरी.
फिर पिछली सीट पर मैं तुम्हें भी
बिठा लुंगी मां.

शिल्पा रोंघे

Friday, April 20, 2018

अरमानों का कत्ल

बड़ी ख़ामोशी से करते है अरमानों का कत्ल कुछ लोग.
पता है उन्हें  भी अरमानों में ना लहू होता है, ना सांस होती है.
होते है दफ़न तो ना कोई आवाज़ होती है ना कोई फरियाद होती है.

शिल्पा रोंघे 

Thursday, April 19, 2018

दोस्ती

जिस नींव पर गिर जाती है
ऊंच नीच की दीवार
उसे दोस्ती कहते है.
कृष्ण और सुदामा
की दोस्ती की मिसाल
लोग यूं ही नहीं देते हैं.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, April 18, 2018

चलो बागों में

बहुत भागदौड़ भरी है जिंदगी.
बहुत धूप है राहों में.
कंकड़ पत्थर भी चुभते है पैरों में.
हां इसी  आपा धापी के बीच
भूल गए, सब एक बाग आज
भी तनकर है खड़ा हरे भरे पेड़ों
को लेकर.
कोलाहल और धुएं से दूर
कभी वहां का रुख कर लेना.
प्रकृति  अपना वात्सल्य
उड़ेले बगैर कहां रह सकती है भला.
उसकी गोद से बेहतर सुकून कोई कहां है
दे सका ?
कवियों  ने तो कभी चित्रकारों ने उसे
मां का दर्जा यूं ही नहीं दिया.
शिल्पा रोंघे

नारी का सम्मान

क्या अब नारी सिर्फ देव लोक में ही
सम्मानित रह गई है ?

मां की कोख में हो
तब भ्रूणहत्या की बात सोचकर सहम जाती है.

गर  दुनिया में आने  का सौभाग्य पा जाए तो
तब अस्मत को लेकर जाती है सहम.

चढ़ती  है डोली तब
दहेज जैसे दानव को देखकर जाती है सहम.

दुनिया  में हो चाहे कितना भी धरम और करम
धरती पर जब तक अपमानित होगी नारी.
अधूरे ही रह जाएंगे सारे पाखंड.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, April 17, 2018

लहू कहां भेद करता है.

लहू का रंग बस लाल होता है
चाहे हो किसी का भी.

उससे ज्यादा बेशकीमती कुछ नहीं होता है.
सबकी रगों में एक ही रंग का लहू दौड़ता है.

वो ना हरा होता है ना भगवा होता है
वो सिर्फ लाल होता है.

लहू  ही नया जीवन देता है.
लहू  भेद कहां करता है.
लहू ही तो एकता का प्रतीक होता है.

शिल्पा रोंघे

Sunday, April 15, 2018

अमन

काश "अमन" नाम के पंछी को कर लिया जाए कुछ
देर के लिए कैद.

लिखा जाए एक ख़त.
जिसमें  हो भाईचारे की बात.

बांध के पैरों  में उसके वो ख़त
कर दिया जाए आसमान में उड़ने को
आजाद.

जाए जहां भी वो पंछी उड़ते हुए.
ले जाए सिर्फ ख़ुशहाली और
एकता का पैगाम.

शिल्पा रोंघे

Friday, April 13, 2018

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के विरोध में-

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के विरोध में-

जब नैतिक मूल्यों का पतन हो जाए, तब सख़्त
कानून का प्रयोग ही आखिरी उपाय रह जाता है.

शिल्पा रोंघे

Thursday, April 12, 2018

हर नारी सुंदर है

हर नारी सुंदर है.
आभूषण और सौंदर्य प्रसाधन तो केवल
शोभा बढ़ाते हैं.

हर नारी सुंदर है.
रंग बिरंगे वस्र
तो केवल शोभा बढ़ाते हैं.

निःस्वार्थ प्रेम भाव, समर्पण, आदर और सत्कार
यही सब गहने एक नारी की सच्ची शोभा बढ़ाते है.

हर नारी सुंदर है.
सिर्फ देखने वालों के नज़रिए का फर्क भर है.

नारी का सौंदर्य किसी आभूषण का मोहताज नहीं.
नारी तो सदियों से सुंदर थी और आज भी है.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, April 10, 2018

बादल भेद कहां करता है

बादल भेद कहां है करता.
सूखी नदियां जो देखती है उसका रस्ता 
लहरों से उनकी झोली भर है देता.

बंजर जमीनें जो देखे उसका रस्ता 
हरियाली से उसका दामन सजा है देता.

गलियां जहां देखती है कागज की कश्ती उसका 
रस्ता.
बहता पानी बनकर उमंग है भरता.

बादल क्या जाने बड़ा और छोटा.
आसमान में रहकर भी जमीन से जुड़ा है रहता.

शिल्पा रोंघे

Friday, April 6, 2018

हमदर्दी या प्यार

एक मज़बूत रिश्ते के लिए
एक दूसरे  के लिए हमदर्दी
होना जरूरी  है लेकिन ये बात
भी सही है कि हर हमदर्दी
का मतलब प्यार नहीं है.

शिल्पा रोंघे

सच बोलने या आलोचना करने

सच बोलने और आलोचना करने
करने में बस इतना फ़र्क है कि
आलोचना हर कोई कर लेता है चाहे वो झूठी ही
क्यों ना हो
और सच बोलने की हिम्मत बहुत
कम लोग जुटा पाते है
चाहे उससे कितने ही लोगों का भला
हो रहा हो
शिल्पा रोंघे

थोड़ी लड़ाई थोड़ा प्यार

थोड़ी लड़ाई और थोड़ा प्यार
ये तो एक मजबूत रिश्तें में
चलता है पर बंटा हुआ प्यार
बिल्कुल नागवार है.

शिल्पा रोंघे

माफ़ी

यूं  तो  दो शब्दों
से बनीं  होती है "माफ़ी".
जिसे दे देने से ना कोई बड़ा होता है.
ना मांग लेने से छोटा होता है.
हां ये दो शब्द याद रखने वाला
इंसान ही बड़े दिल वाला होता है.

शिल्पा रोंघे

Monday, April 2, 2018

बड़ी खामोशी से

बड़ी ख़ामोशी से
सब कुछ सहेंगे अब
बारिश,धूप और पेड़ से गिरती
सूखी पत्तियों की चादर ओढ़
लेंगे हम.
भीड़ से दूर पहाड़ों को काटकर रास्ता
बनाकर चुपचाप से नदी
की तरह शहर से दूर कहीं
बहेंगे हम.

लेकिन सुना है तेरे खेत ख़लिहानों
से गुजरती है नदी की धारा कोई
उन्हें सींच देंगे हम.
लहलहाएंगे हरियाली का हिस्सा बनकर
 तुमसे दूरी बनाकर भी
तुम्हारे काम आएंगे हम.

शिल्पा रोंघे

जो होता है अपना

जो अपना होता है
वही सबसे ज्यादा बेगाना
होता है.
अक्सर सांसे अपनी ही धोखा देती है
वरना हवा तो अक्सर जिंदगी देने के
लिए ही है बहती.
शिल्पा रोंघे

चांदनी बनों

किसी को जलाकर कर दे खा़क
ऐसी आग तुम ना बनों
बनना है तो सूरज सा
बनों जो उगे तो दुनिया को रोशनी
और डूबे तो दे चांद को चांदनी

शिल्पा रोंघे

Sunday, April 1, 2018

मिले या ना मिले

मिले या ना मिले हमें कोई
हम तो दिल में प्यार और जुबां पर दुआ रखते है.
वरना गले मिलकर भी
लोग पीठ में छुरा घोंपा
करते है.
शिल्पा रोंघे

पुराने सिक्कों की तरह मोहब्बत

कभी कभी मोहब्बत पुराने सिक्कों की तरह होती है
जो बाजार में नहीं चलते लेकिन होते बेशकीमती है.

शिल्पा रोंघे

पहली मोहब्बत

चलो बात आज पहली मोहब्बत
की करते है कैसे होती है वो, कहां
होती है और किस अंजाम पर पहुंचती है.
जब जानना चाहा कईयों से तो जवाब कुछ
यूं मिला.

अक्सर वो जिस्मानी रिश्ते से परे बहुत
मासूम होती है.
अक्सर बेवफ़ाई की गुंजाइश इसमें
कम ही होती है.
क्योंकि ज़ुबां से बयां कम ही होती है.

मासूम दिल को दुनियादारी की समझ
ही कहां होती है.

किसी नए नए पत्ते पर पड़ी ओस
की बूंद की तरह होती है बचपन
की पहली मोहब्बत
जो अक्सर जिंदगी का सूरज
उगते ही भाप सी बनकर उड़
जाती है कहीं.

अक्सर दिल के किसी कोने
में याद बनकर रह जाती है कहीं.

शिल्पा रोंघे

उम्मीदों के चिराग

अक्सर इश्क में होता है यूं भी जो जलाता है
उम्मीद के चिराग़
वो ही उसे बुझा भी देता है.
होनी के इसी खेल को ही तो मिलना और बिछड़ना कहते है.

शिल्पा रोंघे

सादगी

ना मेरे गालों पर लाली होगी
ना होंठ होंगे सुर्ख लाल
ना आंखों में काजल होगा
ना लट सुलझी हुई होगी
कुछ इस तरह बिना बनावटी
सजावट के मैं तुमसे मिलना
चाहूंगी अपने वास्तविक रूप
के साथ तुम्हारे वास्तविक
हृदय से जोड़ना चाहूंगी
अपने संवेदनशील मन के
तार.

शिल्पा रोंघे

जिससे नफ़रत उससे मोहब्बत

जिससे नफ़रत बेइंतहा होती है
उससे मोहब्बत भी
बेपनाह होती है गुज़रे ज़माने में.

शिल्पा रोंघे

जिंदगी में हार की स्वीकार

ज़िंदगी में हार को दिल से
स्वीकार करने की आदत डाल लो
चाहे वो बार बार ही क्यों ना मिलें
एक दिन हार ही जीत का हार
बन कर तुम्हारें दामन में आ गिरेगी.

शिल्पा रोंघे

ख्वाहिश

सालों तक एक जगह जड़ें
फैला चुका पेड़ नहीं
कलम बनने की ख़्वाहिश है
जो रम जाए हर डाल पर
बंध जाए आसानी से
देखो क्या होता है
फिर जमीं से उपर
और आसमां के नीचे
खड़े होकर नए रंग का फूल
बनकर
पहले से लगी पुरानी डाल पर, बिल्कुल अलग रंग के फूल
का साथ पाकर
नई आबोहवा में कैसे
खिलता है कोई देखना है
एक नए माहौल में जाकर.

शिल्पा रोंघे

एक किसान के दिल की बात

मैं महंगी गाड़ियों, और एसी इमारतों में बैठकर विकास की
बात नहीं करता.

मैं जून की दोपहर में तपकर
दो जून की रोटी का इंतजाम करता हूं.
मेरी मेहनत को भाषा, जाति और धर्म से जोड़कर मत देखो.

मैं किसान हूं
चाहे संक्रांति हो, पोंगल हो, लोहड़ी हो या भोगाली बिहू
लहलहाती फसलों का हर
एक त्यौहार बड़ी खुशी खुशी मनाता हूं.

शिल्पा रोंघे

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...