Monday, April 13, 2020

चाहतों की कहानी


कितना ही प्रलोभन दे कोई,
जो अपनापन चाहते है वो इसके अलावा कुछ और नहीं चाहते है।

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मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...