Saturday, April 25, 2020


दर्द की तंग गलियों से गुज़रती हुई,
फिर खुशियों के खुले आसमान
के तले ख़्वाब बुनती रहती हूं।
पता नहीं कब पूरा होगा
भावनाओं का ये स्वेटर मेरा,
जिसे बंद करके अलमारी में जिंदगी
की ठिठुरन से बचने के
लिए संभालकर रखना चाहती हूं।
शिल्पा रोंघे

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