जानते है हम कि उनसे कभी भी नहीं मिल सकते।
फिर भी
ना जाने लगता है ये क्यों बरसो से नहीं, सदियों से उन्हें पहचानते है हम।
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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