Saturday, April 25, 2020

गिरधारी

मनोहर मुस्कान, चंचल नयन, कानों में कुंडल
और चेहरे पर आभामंडल।
मेरे गिरधारी सा ना कोई
और मनभावन।

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...